भटनवारा सतना अमरपाटन मार्ग में सतना से लगभग 11 कि. मी. की दूरी पर लगभग 2500 आबादी का गाँव है । जो प्राचीन बरमै राज्य नागौद का एक सम्पन्न एवं प्रसिद्ध गाँव है ।
यहाँ हम मुख्य रूप से माँ कालिका देवी की चर्चा करते हैं । देवी जी के बारे में ठीक ठीक पता नहीं चलता कि कब और किसके माध्यम से आई किन्तु यह निश्चित है कि देवी जी भरहुत स्तूप से संबंधित ‘यक्षिणी’ की मूर्ति है । भरहुत जो कभी साँची स्तूप की तरह था ।
प्रश्न ये उठता है कि ये मूर्ति भरहुत से भटनवारा कैसे आई कि मूर्ति भरहुत से रातों रात भाद गाँव के हरिजन आदिवासियों द्वारा ले जाई जा रही थी किन्तु मूर्ति विशाल होने के कारण पहुँचना न हो सका। अतः भटनवारा करारी नदी में छोड़कर भाग गए । बाद में ठाकुर साहब मना सिंह भटनवारा ने कालिका देवी की संज्ञा दी और प्राण प्रतिष्ठा करवाई रामनवमी में मेले की शुरुआत करवाई कालांतर में मनसुख सोनी ने नया मंदिर बनवाया ।
शिला स्तंभ में शिला कर्म के दान दाता का उल्लेख है, पर प्रस्तर पर अंकित मूर्ति का नाम नहीं मिलता मूर्ति में अनेक आभूषण से सुसज्जित देवी नरवाहन में आरूढ है इसे त्रिभंग मुद्रा में खड़ा दिखलाया गया है, दोनों पैर के नीचे के भाग में बनी नर आकृति के करतलों पर स्थापित है । दाहिने हाथ में कमल कलिका है, बाया हाथ कमर पर है । हाथों में चूडिया हैं /कंगन एवं उत्तरीय है । कटि पर मेखला है । जिससे सामने की ओर निलंबित दस लडों का रत्न जडित वस्त्र है अन्य आभूषणों में त्रिरत्न जडित ग्रैवेयक, वक्षाश्रित एक लड़ीदार हार है ।कर्ण में कुण्डल, मस्तक पर आधारित रत्न जाल तथा सिर पर मौक्तिक जाल, केयूर तथा कंटक एवं पैरों में लच्छे उल्लेखनीय हैं । मूर्ति में चमक है, पुष्ट वक्ष पैर त्रिभंग स्थिति में लगभग 7 फिट ऊँची प्रस्तर प्रतिमा अद्वितीय बन पड़ी है ।वर्तमान में मंदिर प्रांगण में धर्मशाला, शिवमंदिर, हनुमान मंदिर हैं । पीपल, नीम, अशोक वट वृक्ष के कारण स्थान अत्यन्त रमणीक है । नवदुर्गा अवसर पर भारी भीड़ होती है । समय समय पर भक्तों द्वारा भण्डारा, जागरण एवं अन्य आयोजन होते रहते हैं । कई बार चमत्कार भी हुए जनमानस को पूर्ण आस्था एवं विश्वास है । पूर्व में चाहे मूर्ति ‘यक्षिणी’ हो, चाहे कुबेर की पत्नी ‘भुंजती’ हो। वर्तमान में वह मात्र और मात्र ‘मातृ कालिका’ हैं । आम जनमानस को इसी रूप में स्वीकार्य हैं ।